भारतीय किसान की व्यथा

 

किसान की समस्यांए ----


( गरीब किसान का जीवन पर कविता )


नीले आसमान को निहारती ये आंखें,
बूंद बूंद पानी को तरसते प्यासी ये आंखें,
ना जाने इन आंखों में आती आंसुओं की धार कहां से।


तरस रही ये धरती भी बूंद बूंद पानी को,
बुझी ना प्यास इस धरती की,
आंखों से छलकते इन आंसुओं की धार से,
ना जाने इन आंखों में आती आंसुओं की धार कहां से।


उठाया है हल मैंने अपने कंधों पर,
लेकर तुम्हारी भूख मिटाने का संकल्प,


तुम्हारे लिए बरसों से मैंने चीरा है, अपनी धरती मां का सीना,


ताकि परोस सकु, तुम्हारी थाली में अन्न रूपी वो खून पसीना, अन्न रूपी वो खून पसीना।


 

kisan

आजीवन करी जोखिम भरी किसानी है ये,
खुद भूखा रहकर आपकी भूख मिटाई है,


नारों में किया जिसका तुमने खूब जय जयकार है,
तुम्हारी भूख मिटाने वाला मैं भूखा किसान हूं।


अब कुछ ना बचा मेरे पास गिरवी रख आने को,
कहने को बस अब ये अधमरी सी जान बाकी हैं,


जाकर क्या जवाब दूं,
मेरी बूढ़ी मां को,
रसोई में निहारती घरवाली को, भूख से बिलखते मेरे बच्चों को,


बच्चों की भूख में धधकती ये आंखें,
बूंद-बूंद पानी को तरस की प्यासी ये आंखें,
ना जाने इन आंखों में आती आंसुओं की धार कहां से।


काश वो दिन दोबारा भी आए,
जब बसंत की बहार में,
चिड़ियों की चहचहाती आवाज में,


आसमान से बरसती पानी की बूंदों को निहारती ये आंखें।


हवा में झूमते, गगन को चूमते, मानो विलुप्त हुई हरियाली से,
इस धरा को सवारती ये फसलें।


इन सब को निहारती खुशी से झूमती प्यासी ये आंखें।




 

पर इंतिहान बाकी थी इंतजार की,
मची थी मन में उथल-पुथल,
था खेतों में खड़ा अकेला,


पगड़ी सिर की लपेट गले में,
लटक गया पेड़ की टहनी पर,
चुराकर सबसे नैना।


मैं किसान हूं,
कभी न बीतने वाला वर्तमान हूं।।


( yasraj sahu )


garib kisan

 

 

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