"प्रेम पाती" प्रेम पर कविता

 

ओ मितवा..!!


वो प्रेम पाती मैंने भेजी नहीं तुमको तुम अक्सर हंसते हो न रूमानी बातों पर....


वो प्रेम कविता भी सुनाई नहीं तुमको व्यर्थ लगता है न तुम्हें प्रेम को शब्दों में ढालना...


मगर मैं जानती हूं इनका मोल


मैंने सहेज के रखा है। उन्हें अनमोल रत्नों की तरह


किसी दिन जब तुम थक जाओगे दुनियाँ की अंधी दौड़ में भागते-भागते...


और कुछ पल सुस्ताना चाहोगे.... मेरे पहलू में बैठकर


मैं निकालूंगा वो खजाना...


तुम्हारी गुम हंसी को फिर से लौटाएगी। वो मेरी प्रेम पाती वो रूमानी कविता ।


 

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